मेरी माँ
मेरी माँ ने मुझे है पाला,
कष्ट छोड़ हर मुझे सम्हाला,
सूर्य उदय से सूर्य अस्त तक,
करती मेरा काज वो सारा,
कष्ट छोड़ हर मुझे सम्हाला,
सूर्य उदय से सूर्य अस्त तक,
करती मेरा काज वो सारा,
चिड़िया के मीठे बोलों सी,
है वह मुझको रोज़ उठती,
कोमल हांथों से अपने वो,
कपड़े मेरे हर रोज़ बनाती,
है वह मुझको रोज़ उठती,
कोमल हांथों से अपने वो,
कपड़े मेरे हर रोज़ बनाती,
जैसे भी हों नख़रे मेरे,
रहत समय शाला पहुंचाती,
कितनी भी बीमार हो मग़र
स्वाध्याय पूरा करवाती,
रहत समय शाला पहुंचाती,
कितनी भी बीमार हो मग़र
स्वाध्याय पूरा करवाती,
एक बड़ा इंसान बनूँ मैं ,
रोज़ मुझे यह पाठ पढ़ाती,
झूठ कभी जो बोल पडूँ मैं,
गांधी की वह राह दिखाती,
रोज़ मुझे यह पाठ पढ़ाती,
झूठ कभी जो बोल पडूँ मैं,
गांधी की वह राह दिखाती,
माँ बड़ी ही शक्तिशाली,
कभी तो दुर्गा कभी है काली,
सरस्वती की सी है वह मूरत,
दयावान और करुनाशाली।
कभी तो दुर्गा कभी है काली,
सरस्वती की सी है वह मूरत,
दयावान और करुनाशाली।
मेरी माँ ने मुझे है पाला....
कष्ट छोड़ हर मुझे सम्हाला
(साकेत)